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भारत के महान जल विभाजक नोट्स
नमस्कार दोस्तों और भविष्य के सिविल सेवकों!
आज का ब्लॉग उन अदृश्य रेखाओं के बारे में है जो न केवल भारत के भूगोल को परिभाषित करती हैं, बल्कि इसकी संस्कृति, इतिहास और अर्थव्यवस्था को भी आकार देती हैं। हाँ, मैं बात कर रहा हूँ भारत के महान जल विभाजक के बारे में!
जल विभाजक क्या है?
एक जल विभाजक एक ऊँची भूमि का क्षेत्र है जो दो नदी प्रणालियों को अलग करता है। यह वह रेखा है जहाँ से बारिश का पानी बहता है। एक तरफ का पानी एक नदी प्रणाली में जाता है, जबकि दूसरी तरफ का पानी दूसरी नदी प्रणाली में जाता है।
भारत में कितने जल विभाजक हैं?
भारत में चार प्रमुख जल विभाजक हैं:
जल विभाजक का महत्व
जल विभाजक भारत के लिए कई तरह से महत्वपूर्ण हैं:
- जलवायु: वे विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न जलवायु पैटर्न बनाने में मदद करते हैं। उदाहरण के लिए, हिमालय जल विभाजक भारत के उत्तरी भाग को ठंडा और शुष्क बनाता है, जबकि दक्षिणी भाग को गर्म और आर्द्र बनाता है।
- नदी प्रणाली: वे भारत की प्रमुख नदी प्रणालियों को खिलाते हैं, जो सिंचाई, जलविद्युत और परिवहन के लिए महत्वपूर्ण हैं।
- वनस्पति और जीव: वे विभिन्न प्रकार के वनस्पति और जीवों का समर्थन करते हैं। उदाहरण के लिए, हिमालय जल विभाजक दुनिया के कुछ सबसे जैव विविध क्षेत्रों में से एक है।
- संस्कृति और इतिहास: उन्होंने भारत की संस्कृति और इतिहास को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उदाहरण के लिए, सिंधु घाटी सभ्यता का विकास सिंधु नदी के किनारे हुआ था।
एसएससी, यूपीएससी और पीएससी छात्रों के लिए महत्व
जल विभाजक एसएससी, यूपीएससी और पीएससी जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्रों के लिए महत्वपूर्ण हैं। ये परीक्षाएँ भारत के भूगोल पर बहुत अधिक ध्यान देती हैं, और जल विभाजक भारत के भूगोल को समझने का एक अनिवार्य हिस्सा हैं।
इस ब्लॉग में, हम भारत के महान जल विभाजकों के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे। हम उनके स्थान, महत्व और भारत के भूगोल, संस्कृति और इतिहास पर उनके प्रभाव को देखेंगे।
तो, चलिए भारत के इन अदृश्य रेखाओं की यात्रा पर निकलते हैं, जिन्होंने हमारे देश को इतना खास बनाया है!
मुझे आशा है कि यह ब्लॉग भारत के महान जल विभाजकों के बारे में आपकी समझ को बढ़ाने में मदद करेगा। यदि आपके कोई प्रश्न हैं, तो कृपया उन्हें टिप्पणियों में पूछें।
भारत के महान जल विभाजक
अरावली पर्वत
यह प्राचीन वलित पर्वत है।
यह अवशिष्ट (Relict) पर्वत का उदाहरण है।
यह 692 Km. की दूरी में विस्तृत है तथा इसका अधिकतम भाग राज. [ 550 Km.] में है।इस पर्वत की औसत ऊँचाई 930 m. 1
गुरु शिखर इसकी सबसे ऊँची [ 1722m.] चोटी है।
इस पर्वतीय क्षेत्र में बहुत से खनिज पाए जाते हैं सीसा, जस्ता, चाँदी, लौह अयस्क तथा ताँबा
यह महान जल विभाजक का एक भाग है।
विन्ध्याचल
यह एक खण्ड पर्वत है। : बाघेलखण्ड
यह पर्वत चूना पत्थर से निर्मित है।
यह श्रेणी उत्तरी तथा दक्षिणी भारत को अलग करती है।
यह श्रेणी नर्मदा भ्रंश घाटी की उत्तरी सीमा का निर्माण करती है।
यह लगभग 1050 km. की दूरी में
नागपुर पठारी क्षेत्र तक विस्तृत है।
इस श्रेणी में विभिन्न पहाड़ियाँ सम्मिलित है :- भारनेर, कैमूर, पारसनाथ
गुजरात से छोटा
इस श्रेणी में हीरे के लिए विख्यात क्षेत्र ‘पन्ना (MP) स्थित है।
सतपूरा
यह एक खण्ड पर्वत है।
यह नर्मदा भ्रंश घाटी की दक्षिणी सीमा तथा घाटी की उत्तरी सीमा का निर्माण करता है। तापी भ्रंश
यह बालूपत्थर से निर्मित पर्वत है।
यह मुख्य रूप से MP तथा गुजरात में स्थित है।
यह विभिन्न पहाडियों के रूप में विस्तृत है:- राजपीपला, गाविलगढ़, महादेव, मैकाल
महादेव पहाड़ियों में सतपुरा की सबसे ऊँची चोटी धूपगढ़ स्थित है [ 1350 m.]महादेव पहाड़ियों में ही पंचमढ़ी स्थित है।
पंचमढ़ी एक जैव आरक्षित क्षेत्र है।
महादेव पहाड़ियों के दक्षिण में बेतुल का पठार स्थित है जहाँ से तापी नदी का उद्गम होता है।
मैकाल पहाड़ियों की सबसे ऊँची चोटी अमरकंटक है जहाँ से सोन तथा नर्मदा नदी का उद्गम होता है।
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पश्चिमी घाट
यह तापी घाटी से कन्याकुमारी तक विस्तृत है।
यह लगभग 1600 Km. की दूरी में विस्तृत है तथा इसकी औसत ऊँचाई 1200 m. है।
इसे सहयाद्री पर्वत भी कहते हैं।
यह एक भ्रंश कगार ( Fault Scary / खण्ड पर्वत) है।पश्चिमी घाट का पश्चिमी दाल तीव्र (Steap) है तथा पूर्वी ढाल मंद है।
दक्षिण पश्चिमी मानसून पवनों द्वारा इस पर्वत पर भारी वर्षा प्राप्त होती है अतः यहाँ उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वनस्पति पाई जाती है।
इस पर्वतीय क्षेत्र में बहुत अधिक जैव विविधता पाई जाती है तथा यह विश्व के 36 Hotspots में से एक है।पश्चिमी घाट को तीन प्रमुख भागों में बाँटा जा सकता है:
उत्तरी सह्याद्री
मध्य सहयाद्री
दक्षिणी सह्याद्रीउत्तरी सह्याद्री
यह भाग तापी घाटी से 16°N के बीच स्थित है।
यह मुख्य रूप से महाराष्ट्र में स्थित है।
इस भाग की सबसे ऊँची चोटी कलसुबाई है जिससे *गोदावरी नदी ‘का उद्गम होता है।
यहाँ की अन्य प्रमुख चोटी ‘महाबलेश्वर’ है। महाबलेश्वर चोटी से ‘कृष्णा नदी’ का उद्गम होता है।मध्य सह्याद्री
यह 16°N से नीलगिरी पहाड़ियों के बीच स्थित है।
यह मुख्य रूप से गोवा तथा कर्नाटक में स्थित है।
इस भाग की सबसे ऊँची चोटी कुद्रेमुख है।
कुद्रेमुख चोटी लौह अयस्क के भण्डार के लिए विख्यात है।
यहाँ बाबा बुदन पहाड़ियाँ’ भी पाई जाती है जो कहवा (Coffee) के उत्पादन के लिए विख्यात है।दक्षिणी सह्याद्री
दक्षिणी सहयात्री नीलगिरी पहाड़ियों तथा कन्याकुमारी के बीच स्थित है।इस भाग में तीन प्रमुख पहाड़ियाँ स्थित है
अन्नामलाई
इन पहाड़ियों की सबसे ऊँची चोटी agasthyamalai (2695 m.) है।(केरल)
अनाईमुडी दक्षिण भारत की सबसे ऊँची चोटी है।Cardamom Hills इलायची पहाड़ियाँ
यह पहाड़ियाँ मसाले की खेती के लिए विख्यात है । मुख्य रूप से इलायची के लिए ]
इन पहाड़ियों की सबसे ऊँची चोटी Agarthyamalai है। यह एक जैव आरक्षित क्षेत्र भी है।Palani Hills
इन पहाडियों में तमिलनाडू का विख्यात Hill Station Kodaikanal स्थित है।
पश्चिमी घाट के दर्रे
थालघाट :- Mumbai -Nasik -NH 3
भोरघाट :- Mumbai -Pune -NH 4
पालघाट :- Kochi – Coimbatore (कोयंबटूर) -NH 47
सेनकोटा :- Tiruvananthapuram – Madurai -NH 49
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