हाड़ौती के चौहान-क्या आप RPSC या अन्य राजस्थान राज्य परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं और इतिहास खासकर, हाड़ौती के चौहान वंश को लेकर थोड़ा उलझन में हैं? चिंता न करें, आप अकेले नहीं हैं! लेकिन घबराने की बात भी नहीं है! आज हम इस ब्लॉग के जरिए हाड़ौती के चौहानों के इतिहास, उनके शासनकाल की प्रमुख उपलब्धियों, और सबसे महत्वपूर्ण, परीक्षा दृष्टिकोण से उनके महत्व को गहराई से समझेंगे। तो फिर देर किस बात की? अपनी पट्टियाँ कस लें और हाड़ौती के चौहानों के शौर्यपूर्ण इतिहास और परीक्षा में उनकी प्रासंगिकता की यात्रा पर चल पड़ें !
हाड़ौती के चौहान / बूंदी के चौहान ( हाड़ा )
संस्थापक – देवी सिंह (1241 ई.)
नाम – बूंदा मीणा के नाम पर
देवीसिंह बम्बावदे का सामंत था
गंगेश्वरी देवी का मंदिर बनवाया
समरसिंह
कोटिया भीलों से संघर्ष कर कोटा छीन
कोटा को राजधानी बनाया।
रणकपुर कुंभाकालीन रणकपुर लेख मैं बूंदी का नाम ‘वृंदावती” मिलता है।
जैत्रसिंह – कोटा किले का निर्माण व प्रसिह गुलाब महल बनवाया
नापूजी→ हल्लु हाड़ा → बीर सिंह
वीर सिंह /वरसिंह
1354 ई. बूंदी के तारागढ़ दुर्ग का निर्माण
महाराणा लाखा ने आक्रमण किया।
1432 में गुजरात के अहमदशाह ने दण्ड वसूला
महमूद खिलजी ने 3 बार आक्रमण किया (1449,1453 ,1459 ई.)
1453 में वीर सिंह मारा गया
नारायणदास
खानवा के युद्ध (1527) में सांगा की तरफ से बाबर के विरूद्ध भाग लिया।
नर्मद
अपनी पुत्री “कर्मावती” का विवाह चितौड के राणा सांगा के साथ किया जो “हाड़ी कर्मावती” नाम से प्रसिद्ध
सांगा हाड़ा रानी के कहने पर उसके बालक राजकुमार विक्रमादित्य व उदयसिंह को रणथम्भौर का दुर्ग दिया था।
राव सुर्जन हाड़ा (1554-1585)
आमेर शासक मानसिंह कच्छवाहा ने अकबर और सुर्जन हाड़ा के बीच संधि कराई।
शर्त – रणथम्भौर दुर्ग दिया और चुन्नार के वाराणसी आदि 4 परगने ले लिए
मुगलों के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित नहीं होंगे । (47-2013) 6- शाही दरबार में उपस्थित होते समय अपने हथियार साथ में रखेंगे।
अकबर ने “रावराजा” की उपाधि दी
चन्द्रशेखर ने “सुर्जन चरित्र” की रचना की।
काशी मैं मृत्यु ।
राव भोज ( 1585-16075)
राव रतन (1607-16218)
चित्रकला के लिए – न्यायप्रियता “रामराजा” की उपाधि की के लिए
राव शत्रुशाल हाड़ा / छत्रशाल हाड़ा (1621-1658ई.)
केशवरायपाटन (बूंदी) में “केशवराय का मंदिर” बनवाया।
बूंदी किले में “रंगमहल” का निर्माण
राव भावसिंह हाड़ा (1658-1681ई)
राव अनिरूद्ध हाडा (168) – 1695 ई.)
1683ई में बूंदी में “चौरासी खंभों की छतरी” का निर्माण
अनिरुद्ध की पत्नी रानी नाधावती ने बूंदी में “रानीजी की बावड़ी” का निर्माण कराया।
इसका पुत्र जोधसिंह हाड़ा 1706 मैं बूंदी के जैतसागर तालाब में गणगौर के अवसर पर नाव की सवारी करते समय अपनी पत्नियों सहित डूब गया। तभी से “हाड़ो ले डूब्यो गणगौर ” प्रशिद्ध हो गया
राव राजा बुद्धसिंह (1695-1739 ई.)
“नेहतरेग” नामक ग्रंथ की रचना की
मुगल बादशाह “फरूखशियर “ने बूंदी राज्य का नाम ‘फर्ररुखाबाद” रखा और कोटा नरेश को दे दिया।
परंतु समय कुछ समय वापिस दे दिया।
राजस्थान में मराठों का सर्वप्रथम प्रवेश बूंदी में हुआ।
बुद्धसिंह की कच्छवाही रानी आनंद कुंवरी ने अपने पुत्र उम्मेद सिंह के पक्ष में मराठा सरदार होल्कर व राणोजी को आमंत्रित किया
राव उम्मेद सिंह (1749-1804)
“श्री जी” के नाम से जाना जाता था
मराठा सरदार • होल्कर को मामा कहता था
बेला बूंदी के तारागढ़ किले में “चित्रशाला” का निर्माण (बनपाल)
अपने जीवन काल में स्वयं ने सोने की मूर्ति बनाकर अंतिम संस्कार करवाया।
“हूंजा” नाम का घोड़ा था
1818 ई में बूंदी शासक राव विष्णुसिंह ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी से संधि कर ली।
राव रामसिंह – राजपूताने का एकमात्र शासक थो जिसने 1857 की क्रांति के दौरान अंग्रेजों का साथ नहीं दिया
कोटा के चौहान (हाड़ा)
कोटा का नाम – नंदग्राम भी मिलता है।
कोटा नाम – भील शासक कोटिया के नाम पर
कोटा माधोसिंह हाड़ा (1631-1648)
बूंदी के राजा रतन सिंह पुत्र थे
शाहजहां के सहयोग से कोटा रियासत का गठन
संस्थापक
कोटा दुर्ग – नामकरण – कोटिया भील के नाम पर
घोड़ा – बाद रफ्तार (शाहजहों ने दिया)
राव मुकुंदसिंह (1648-1658 ई.)
माधोसिंह के पुत्र थे।
पर्यावरण प्रेमी शासक (राज. के तीसरा राष्ट्रीय उद्यान का नामकरण इन्हीं के नाम – मुकुंदरा राष्ट्रीय उद्यान)
मुकुन्दरा का किला
उपपत्नी के लिए “अबली मीनी” का महल (हाड़ौती का ताजमहल)
“अन्ता का महल” बनवाया
” धरमत के युह” में मृत्यु (औरंगजेब के पक्ष में लड़े।)
राव जगतसिंह
औरंगजेब के दक्षिण भारत अभियान में साथ रहें।
राव. किशोर सिंह
आदिनाथ जैन मंदिर – चाँदखेड़ी (सालावाड)
राव रामसिंह प्रथम
जाजऊ का युद्ध (1707)
विजयी – मुअज्जम (बहादूरशाहम्)
1707 ई. बहादूरशाह 1 में कोटा का विलय बूंदी मैं कर दिया।
महाराव भीमसिंह (1707-1720)
कोटा के प्रथम शक्तिशाली शासक
बूंदी का विलय कोटा में कर दिया
अंत में – वृंदावन चले गए – भक्ति
उपनाम कृष्णदास
भीमशाही सिक्के चलवाए
फरूखशियर ने पुरस्कार स्वरूप शेरगढ किला दिया
राव शत्रुशाल (1756-1764)
दीवान – झाला जालिमसिंह (हाड़ौती का दुर्गादास राठौड़)
भरवाड़ा मरवाड़ा का युद्ध
माधो सिंह I (जयपुर)
शत्रुशाल विजित, झाला जालिम सिंह कारण रणथम्भौर का दुर्ग
मराठों का प्रवेश साला जालिम सिंह 1779 झालरापाटन की स्थापना
राव गुमानसिंह (1764-1770)
झाला जालिम सिंह को पद से हटा दिया
मेवाड़ रागा अरिसिंह ने जालिम सिंह को शरण दी व चीतखेड़ा की जागीर दी।
राव उम्मेद सिंह (1770-1819)
दीवान – जालिम सिंह को दुबारा बनाया गया
अंग्रेजों से संधि – 26 Dec. 1817.
हस्ताक्षर – जालिमसिंह
अंग्रेजों से सबसे पहले संधि -करौली-9 Nov. 1817
दूसरी रियासत कोटा
विस्तृत संधि – प्रथम रियासत – कोटा-1817
एकाले उम्मेद सिंह के काल में शिकार का चित्रण कोटा शैली का प्रतीक बना
आजादी के समय कोटा का शासक – भीमसिंह
मांगरोल का युद्ध (1821) = जिलशोर सिंह V/s झालिम सिंह अंग्रेजों में help की
झालावाड रियासत की स्थापना :- 1838
झाला मदनसिंह के सहयोग द्वारा समय गठित अँग्रेजों द्वारा गठित अंतिम ।
नवीन रियासत राजधानी – झालरापाटन
सिरोही के चौहान
मूल नाम – शिवपुरी
सिरोही के देवड़ाओं का आदिपुरूष लुम्बा जालौर के देवड़ा शाखा का
स्थापना 1425 ई. में सहसामल द्वारा
1451 में लाखा शासक बना लाखनाव तालाब का निर्माण
1823 शासक शिवसिंह ने अंग्रेजों से संधि कर ली।
अग्रेजों से संधि कसे वाली राज की अंतिम रियासत
इसके साथ आप चोहान की वंश की अन्य शाखाओ के बारे में पढ़ सकते है जो निम्न लिखित है
यहाँ पर दी गई सभी जानकारी हस्तलिखित नोट्स और wikipidia से जांचकर लिखा गया है . अगर कोई त्रुटी हो तो कमेंट्स में जरुर बताये