पवन और उसके प्रकार

पवन और उसके प्रकार

अरे जुनूनी परीक्षा-पास करने वालों, ज़रा रुक जाओ! क्या हवा सिर्फ पतंग उड़ाने और बालों को लहराने के लिए होती है? बिल्कुल नहीं! ये तो प्रकृति का एक जादूगर है, जिसके पास राज़ों का खज़ाना भरा पड़ा है! और आज हम उन्हीं राज़ों को खोलेंगे, SSC, PSC और UPSC की परीक्षाओं में तुम्हारा नाम रोशन करेंगे!

इस ब्लॉग में, हम पवन के हर पहलू का गहन विश्लेषण करेंगे:

  • वो कौन-कौन से प्रकार हैं ?
  • तूफान, बवंडर और चक्रवात जैसे राक्षस कैसे बनते हैं?
  • वायुमंडल के स्तर क्या हैं और उनका पृथ्वी पर क्या प्रभाव पड़ता है?
  • हर परीक्षा में पूछे जाने वाले सवालों के लिए हम शानदार टिप्स और ट्रिक्स देंगे!

तो तैयार हो जाओ, पवन  के साथ बहने के लिए! ये सफर सिर्फ ज्ञानवर्धक नहीं, रोमांचक भी होगा. हम तुम्हें वायुमंडल की ऊंचाइयों तक ले जाएंगे और फिर धरती पर लौटाएंगे, एक सच्चे विजेता के रूप में!

चलो, आज ही हवा के रहस्यों को उजागर करते हैं और SSC, PSC और UPSC की परीक्षाओं में धूम मचाते हैं!

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पवन और उसके प्रकार

पवने तीन प्रकार की होती है

स्थायी पवन

 अर्ध-स्थायी पवन

 स्थानीय  पवन

 स्थायी पवनें कोनसी है ?

वह पवनें जिनकी दिशा में परिवर्तन नहीं होता, उन्हें स्थायी पवनें कहते हैं।
यह पवनें पृथ्वी की बहुत बड़े भू-भाग को प्रभावित करती है अतः ग्रहीय (Planetary) पवनें कहते हैं
पृथ्वी उन्हें पर चार प्रमुख स्थाई पवनें होती हैं :-
व्यापारिक पवनें
पछुआ पवने
ध्रुवीय पवनें
विषुवतरेखीय पछूआ पवनें

व्यापारिक पवनें 

यह पवनें उपोष्ण कटिबन्धीय उच्च दाब पेटी क्षेत्र से
| विषुवतरेखीय निम्न दाब पेटी की ओर चलती है।. → यह पवनें पूर्वी दिशा से प्रारम्भ होती हैं अत: इन्हें पूर्वा पवनें भी कहा जाता है। (Easterlies) 75
यह पवनें उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में चलती हैं।
यह पवनें महाद्वीपों के पूर्वी तट पर वर्षा उत्पन्न करती हैं। पश्चिमी भाग तक पहुँचते-पहुँचते यह पवनें शुष्क हो जाती हैं अतः अधिकतम गर्म मरुस्थल महाद्वीपों के के पश्चिमी भाग में पाए जाते हैं।
इन पवनों के प्रभाव के कारण उष्ण कटिबन्धीय चक्लवात महाद्वीपों के पूर्वी तट से टकराते हैं।

पछुआ पवनें 

यह पवनें उपोष्ण कटिबन्धीय उच्च दाब पेटी क्षेत्र से शीतोष्ण कटिबन्धीय निम्न दाब पेटी की ओर चलती है।
यह पवनें पश्चिम से चलना प्रारम्भ करती हैं अत: इन्हें पछुआ पवनें (Westerlies) कहते हैं।
इन पवनों के कारण महाद्वीपों के पश्चिमी भाग में वर्षा प्राप्त होती है तथा शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्तवात टकराते हैं।
दक्षिणी गोलाई में इन पवनों की गति तीव्र होती है क्योंकि दक्षिणी गोलार्द्ध में महाद्वीपीय भाग की अपेक्षा महासागरीय भाग अधिक है।
अत: दक्षिणी गोलार्द्ध में इन पवनों को विभिन्न नाम से जाना जाता है:
40→ Roaring Forties ( गरजती चालीसा )
50→ Fwrious Fifties ( प्रचण्ड पचासा)
60→ Shoricking “Sixties ( चीखती साठा )

 ध्रुवीय पवनें

यह पवनें ध्रुवीय उच्च दाब पेटी क्षेत्र से शीतोष्ण कटिबन्धीय निम्न दाब पेटी की ओर चलती हैं।
यह पवने पूर्वी दिशा से प्रारम्भ होती है अत: इन्हें ध्रुवीय पूर्वा पवनें भी कहते हैं।
यह पवनें अत्यधिक ठण्डी तथा शुष्क होती हैं।
यह पवनें मुख्य रूप से ध्रुवीय क्षेत्रों में चलती हैं।

 विषुवतरेखीय पछुआ पवनें

यह पवनें 5°N से 5°S   के बीच चलती हैं।
यह पवनें अत्यधिक मन्द गति से चलती हैं।
पृथ्वी के घूर्णन के कारण यह पश्चिम से पूर्व की ओर चलती है।
यह पवनें मानसून निर्माण में सहायक होती है।

अर्द्ध-स्थायी पवनें कोनसी है ?

पवन और उसके प्रकार

यह पवनें वर्ष में कम से कम एक बार अपनी दिशा में परिवर्तन करती हैं अत: इन्हें अर्द्ध- स्थायी पवनें कहते हैं।
मानसून पवनें अर्द्ध-स्थायी पवनें होती है जो ग्रीष्म ऋतु में दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर चलती है तथा शीत ऋतु के दौरान यह पवनें उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम की ओर चलती है।

स्थानीय पवनें कोनसी है ?

जल तथा स्थल समीर 

 

 

पवन और उसके प्रकार
जल तथा स्थल के गर्म होने की प्रकृति अलग होती है। स्थलीय भाग, जलीय भाग की अपेक्षा अधिक जल्दी गर्म या ठण्डा हो जाता है अत: दिन के समय स्थलीय भाग, जलीय भाग की अपेक्षा, जल्दी गर्म हो जाता है जिसके कारण स्थलीय भाग परधिक निम्न दाब तथा जलीय भाग पर उच्च दाब का निर्माण होता है अतः दिन के समय जल समीर चलती है।
रात के समय स्थलीय भाग पर उच्च दाब तथा जलीय भाग पर निम्न दाब पाया जाता है जिसके कारण स्थल समीर चलने लगती है।

पर्वत एवं घाटी समीर “Mountain and Valley Breeze)

पवन और उसके प्रकार
दिन के समय पर्वतीय क्षेत्रों में निम्न दाब बनता है तथा घाटी क्षेत्रों में इसकी अपेक्षा उच्च दाब पाया
जाता है अतः दिन में घाटी समीर का निर्माण होता है। रात को पर्वतीय क्षेत्र घाटी क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक उण्डा हो जाता है जिसके कारण पर्वतीय क्षेत्रों में उच्च दाब तथा घाटी क्षेत्रों में निम्न दाब का निर्माण होता है अतः रात को पर्वत समीर चलती
पर्वत समीर के कारण घाटी क्षेत्रों में ताप विलोमता की स्थिति बनती हैं जिसके कारण घाटी क्षेत्र में कोहरे का निर्माण होता है।

ताप विलोमता क्या है ?

जब वायुमण्डल में ऊँचाई बढ़ने पर तापमान घटने के बजाय बढ़ने लगता है तो उसे ताप विलोमता की स्थिति कहते हैं।
ताप विलोमता के दौरान सतह के पास संघनन की क्रिया होती है तथा कोहरे का निर्माण होता है।
ताप विलोमता की स्थिति विभिन्न क्षेत्रों में बनती हैं

घाटी क्षेत्र

मैदान :-मैदानी क्षेत्रों में ताप विलोमता शीत ऋतु के दौरान बनती है।
ताप विलोमता के निर्माण के लिए निम्नलिखित कारकों की आवश्यकता होती है :-
अत्यधिक निम्न तापमान (लम्बी शरद रातें)

मन्द पवनें बादल रहित आकाश

मैदानों में कोहरे तथा धुआँ के मिलने से Smog [Smoke + Fog I बनता है।

महासागर महासागरीय क्षेत्रों में ताप विलोमता वहाँ पाई जाती है जहाँ ठण्डी एवं गर्म महासागरीय धाराएँ मिलती हैं। इन क्षेत्रों में कोहरे का निर्माण होता है जो नौवहन में बाधा उत्पन्न करता है।

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